Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Thursday, 6 September 2012
"है ये किस्मत की बेरुखी हमसे,
छीन ली जिसने हर ख़ुशी हमसे "
"क्या दिया है बताओ तुमने मुझे,
पूछ रही है ये ज़िन्दगी हमसे"
"जुस्तजू अब नहीं मसर्रत की,
ग़म ने कर ली है दोस्ती हमसे"
"तुम अगर घर को जाओगे सदफ,
रूठ जाएगी चांदनी हमसे"।
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