Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Thursday, 11 October 2012
मंज़र
"
काश ऐसा कोई मंज़र होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता"
"
जमा करता जो मैं आये हुये संग
सर छुपाने के लिये घर होता"
"इस बुलंदी पे बहुत तनहा हू
काश मैं सबके बराबर होता"
"उस ने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और क़लंदर होता"|
--ताहिर फ़राज़
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