Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Wednesday, 2 October 2013
खामोश
"कभी खामोश बैठोगी कभी कुछ गुनगुनाओगी
मै उतना याद आऊंगा मुझे जितना भुलाओगी "
"कोई जब पूछ बैठेगा ख़ामोशी का सबब तुमसे
बहोत समझाना चाहोगी मगर समझा न पाओगी "
"कही पर भी रहे हम तो मोहब्बत फिर मोहब्बत है
तुम्हे हम याद आएँगे हमें तुम याद आओगी "
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