Monday, 12 May 2014

अँधेरे


"रातों में  गर न अश्क बहाऊँ  तो क्या करूँ 
इक पल भी उसको भूल न पाऊँ तो क्या करुँ "

"मैंने सुना है उनको अँधेरे नहीं पसंद 
राहों में अब  मै दिल न जलाऊँ तो क्या करुँ"

"तुम्ही कहो कि छोड़ दे जब ज़िन्दगी भी साथ
फिर मौत को गले न लगाऊँ तो क्या करुँ "

"सोचा तो था कि छोङ दू उसकी  गली मुराद 
लेकिन कही करार न पाउँ तो कया  करुँ"    










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