Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Saturday, 16 July 2016
ख्वाब
"ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है ,
ऐसी तनहाई कि मर जाने को जी चाहता है "
"घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है "
"डूब जाऊं तो कोई मौज निशाँ तक न बताये,
ऐसी नदी में उतर जाने को जी चाहता है"
Wednesday, 6 July 2016
ईद
"मेरी तरफ से आप सभी लोगों को ईद उल फ़ित्र की दिली मुबारकबाद "
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)