Saturday, 16 July 2016

ख्वाब





"ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है ,
ऐसी तनहाई कि  मर जाने को जी चाहता है "

"घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है "

"डूब जाऊं तो कोई मौज निशाँ तक न बताये,
ऐसी नदी में उतर जाने को जी चाहता है" 

















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