Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Monday, 27 August 2012
"बे रब्त ज़िन्दगी का अजब यह सिला मिला,
मुझको खुदा मिला न कोई नाखुदा मिला"
"वो राजदार दोस्त मुझे जिस पर नाज़ था,
मालूम यह हुआ, मेरे दुश्मन से जा मिला।"
"पास जब तुम थे तो तनहाई का एहसास न था,
अब फ़खत याद है और आलमे तन्हाई है"
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