Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Tuesday, 11 September 2012
"ज़रूरते मेरी गैरत पे तंज़ करती है,
मेरे ज़मीर तुझे मार दूँ या की मर जाऊं"
"मेरे अज़ीज़ जहा मुझ से मिल नहीं सकते,
तो क्यूँ न ऐसी बलंदी से खुद उतर जाऊं"
"ज़रा सी ठेस की दहशत से बिखर जाऊं,
मै वो चिराग नहीं जो हवा से डर जाऊं"
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