Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Saturday, 15 September 2012
" ये न पूछो वहाँ से क्या लाए,
उनके कूचे में दिल गवा आए "
खूब इन्साफ है मोहब्बत में,
आँख मुजरिम हो दिल सज़ा पाए"
"
उनके बाद उनके घर में था ही क्या
उनकी तस्वीर भी उठा लाए"
धूप में ग़म की जल रहा हूँ दोस्त,
अब तो हैं सिर्फ़ तेरी ज़ुल्फ़ के साए"
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