Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Friday, 14 September 2012
"ज़हन जब तीरगी उगलते है,
हादसों के चराग जलते है"
"हर नए सिम्त की तलाश में लोग,
अजनबी रास्तो पे चलते हैं"
"भीग जाती है करब की पलकें,
जब भी ग़म आसुओं में ढलते है"
"पूछिये उन से पत्थरों का मिजाज़,
ठोकरें खा के जो सँभलते है"।
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