Thursday, 6 December 2012

हवाओं


"वो तो खुशबू है हवाओं में बिखर जायेगा,
मसअला फूल का है फूल किधर जायेगा"

"हम तो समझे थे एक ज़ख्म है भर जाएगा 
क्या खबर थी कि  रगे जा में उतर जाएगा"

"वो हवाओ की तरह खाना बजा फिरता है 
एक झोका है जो आएगा  गुज़र जाएगा"

1 comment:

  1. वाह- परवीन शाकिर की यह गज़ल!!

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