Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Thursday, 6 December 2012
हवाओं
"वो तो खुशबू है हवाओं में बिखर जायेगा,
मसअला फूल का है फूल किधर जायेगा"
"हम तो समझे थे एक ज़ख्म है भर जाएगा
क्या खबर थी कि रगे जा में उतर जाएगा"
"वो हवाओ की तरह खाना बजा फिरता है
एक झोका है जो आएगा गुज़र जाएगा"
1 comment:
Udan Tashtari
27 April 2013 at 07:54
वाह- परवीन शाकिर की यह गज़ल!!
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वाह- परवीन शाकिर की यह गज़ल!!
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