"यहाँ से अब कहीं ले चल खयाल-ए-यार मुझे,
चमन में रास न आएगी ये बहार मुझे"
"तेरी लतीफ़ निगाहों की ख़ास जुम्बिश ने
बना दिया तेरी फितरत का राज़दार मुझे"
"मेरी हयात का अंजाम और कुछ होता
जो आप कहते ,अभी अपना जानिसार मुझे"
"बदल दिया है निगाहों ने रुख ज़माने का
कभी रहा है ज़माने पे इख्तियार मुझे "
'ये हादसात जो हैं इज़्तराब का पैग़ाम
ये हादसात ही आएँगे साज़गार मुझे "।
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