Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Saturday, 20 April 2013
जलवा
"तेरा जलवा निहायत दिल नशी है
मोहब्बत लेकिन इससे भी हसीं है
"सुना है यूँ भी अक्सर ज़िक्र उनका
कि जैसे कुछ तआल्लुक ही नहीं है"
"मै राहे इश्क का तनहा मुसाफिर
किसे आवाज़ दूं यहाँ कोई नहीं है
"
1 comment:
Ramakant Pradhan
1 June 2013 at 23:09
Beautiful lines!
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Beautiful lines!
ReplyDelete