महफ़िल
"कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गयी ज़माने को"
"सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लूं ग़रीब खाने को "
"दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले
कही जगह न मिली मेरे आशियाने को "
"दबा के चल दिए सब कब्र में दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को"
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