Saturday, 4 May 2013

बेरुखी


"खुदा के वास्ते अब बेरुखी से काम न ले 
तड़प के फिर कोई दामन  को तेरे थाम न ले "

"ज़माने भर में है चर्चा मेरी तबाही के 

मैं डर रहा हूँ कहीं कोई तुम्हारा नाम न ले"

"मिटा दो शौक से मुझको मगर कही तुमसे 

ज़माना मेरी तबाही का इंतिकाम न ले"

"जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से 

वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम न ले" 














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