"खुदा के वास्ते अब बेरुखी से काम न ले
तड़प के फिर कोई दामन को तेरे थाम न ले "
"ज़माने भर में है चर्चा मेरी तबाही के
मैं डर रहा हूँ कहीं कोई तुम्हारा नाम न ले"
"मिटा दो शौक से मुझको मगर कही तुमसे
ज़माना मेरी तबाही का इंतिकाम न ले"
"जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से
वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम न ले"
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