Sunday, 23 June 2013

मिस्मार


(इन द मेमोरी ऑफ़ केदारनाथ ट्रेजेडी इन उतराखंड )

"करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे 
अभी कुछ लोग है उस पार मेरे"


"बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊं घर को

  कहेंगे क्या दर ओ दीवार मेरे "



"वहीँ सूरज की निगाहें थी जियादा 

   जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे"  

"वही ये शहर है तो शहर वालो 
   कहाँ है कुच ओ बाज़ार मेरे"  




1 comment:

  1. in the memory of kedarnath tragedy in which thousands of people lost their lives.

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