(इन द मेमोरी ऑफ़ केदारनाथ ट्रेजेडी इन उतराखंड )
"करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग है उस पार मेरे"
"बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊं घर को
कहेंगे क्या दर ओ दीवार मेरे "
"वहीँ सूरज की निगाहें थी जियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे"
"वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कुच ओ बाज़ार मेरे"
in the memory of kedarnath tragedy in which thousands of people lost their lives.
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