Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Friday, 11 September 2015
निगाहो
"साफ़ ज़ाहिर है निगाहो से कि हम मरते है
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते है"
"दूसरोँ से न देखी गयी कभी अपनी ख़ुशी
अब ये हालत है कि हम हसते हुए डरते हैं "
"गुज़रे लम्हों ने जा के न किया याद हमें
फिर भी शिददत से उन्हें हम याद किया करते हैं "
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