Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Sunday, 6 September 2015
खुशबू
"रंगत तेरी ज़ुल्फो की घटाओं ने चुराई ,
खुशबू तेरे आँचल से हवाओं ने उड़ाई "
"थम थम के बरसना कभी झम झम के बरसना ,
सावन को अदा ये मेरे अश्कों ने सिखाई "
"कैदी तेरी ज़ुल्फ़ों का हूँ आज़ाद जहाँ से,
मुझको ये रिहाई तो वफ़ाओं ने दिलाई"
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