Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Thursday, 13 September 2012
फ़ासलें
"वोह फ़ासलें ही मुझे तय कराए देता है,
कि मेरे ख़्वाबों की उमरें घटाए देता है"
"तमाम अश्क हैं और मुस्कुराए देता है,
ये कौन है जो समुन्दर सुखाए देता है"
"ये किसका हाथ है फिर काट क्यूँ नहीं देते,
जो सारे शहर की शम्मे बुझाए देता है"
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment