Ghazal
SHAM-E-GHAZAL
Sunday, 2 September 2012
"वफ़ा के नाम पर सर क्यों झुका लिया तुमने,
कही किसी को रुला तो नहीं दिया तुमने "
"बगैर आपके तड़पे है
हम भी
सावन में,
कि तनहा ज़हरे जुदाई नहीं दिया तुमने "
"हमें तो नाज़ था तुम पर तुम्हारी उल्फत पर,
यूँ दिल को तोड़ कर अच्छा नहीं किया तुमने।"
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