"बड़े ख़ुलूस से उन के फरेब खाते रहे,
हमारी सादा दिली पे वो मुस्कुराते रहे"
"हमें तो तरके तआल्लुक भी रास आ न सका,
वो याद आते रहे और दिल दुखाते रहे"
"पहोच सके न सरे मंज़िले ख़ुलूस ओ वफ़ा,
कि रहनुमाओ से अब तक फरेब खाते रहे"
"बहुत गुमान था हमें अपनी पारसाई का,
मिले जो उन से तो सारे गुमान जाते रहे"
"सजा के चाँद से चेहरे पे बेरुखी के गहन,
जहाँ में अहले सितम ज़ुल्मते बढाते रहे"
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