"वो शख्स ख्वाबों की बस्ती में खींच लाये मुझे,
जो साथ झोड़ गया था वो याद आये मुझे"
"मैं टूट टूट के बिखरी हूँ कांच की मानिंद,
न जाने कौन है पलकों पे जो बिठाए मुझे"
"मैं अपनी ज़ात मे गुम बेखुदी में रहती हूँ,
सबा कीतरह कोई छेड़े गुदगुदाए मुझे"
"मैं सारी उम्र ख्यालो में रह के जी लूँगी,
फरेब राह गुज़र दे के क्यों बुलाए मुझे"
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